15-04-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

स्नेही, सहयोगी, शक्तिशाली - बच्चों की तीन अवस्थाएँ

अव्यक्त बापदादा, अपने स्नेही, सहयोगी शक्तिशाली बच्चों के प्रति बोले:-

बापदादा सभी स्नेही, सहयोगी और शक्तिशाली बच्चों को देख रहे हैं। स्नेही बच्चों में भी भिन्न-भिन्न प्रकार के स्नेह वाले हैं। एक हैं - दूसरों की श्रेष्ठ जीवन को देख, दूसरों का परिवर्तन देख उससे प्रभावित हो स्नेही बनना। दूसरें हैं - किसी न किसी गुण की, चाहे सुख वा शान्ति की थोड़ी-सी अनुभव की झलक देख स्नेही बनना। तीसरे हैं - संग अर्थात् संगठन का, शुद्ध आत्माओं का सहारा अनुभव करने वाली स्नेही आत्मायें। चौथे हैं - परमात्म स्नेही आत्मायें। स्नेही सब हैं लेकिन स्नेह में भी नम्बर हैं। यथार्थ स्नेही अर्थात् बाप को यथार्थ रीति से जान स्नेही बनना।

ऐसे ही सहयोगी आत्माओं में भी भिन्न-भिन्न प्रकार के सहयोगी हैं। एक हैं - भक्ति के संस्कार प्रमाण सहयोगी। अच्छी बातें हैं, अच्छा स्थान है, अच्छी जीवन वाले हैं, अच्छे स्थान पर करने से अच्छा फल मिलता है, इसी आधार पर, इसी आकर्षण से सहयोगी बनना अर्थात् अपना थोड़ा-बहुत तन-मन-धन लगाना। दूसरे हैं - ज्ञान वा योग की धारणा के द्वारा कुछ प्राप्ति करने के आधार पर सहयोगी बनना। तीसरे हैं - एक बाप दूसरा न कोई। एक ही बाप है, एक ही सर्व प्राप्ति का स्थान है। बाप का कार्य सो मेरा कार्य है। ऐसे अपना बाप, अपना घर, अपना कार्य, श्रेष्ठ ईश्वरीय कार्य समझ सहयोगी सदा के लिए बनना। तो अन्तर हो गया ना!

ऐसे ही शक्तिशाली आत्मायें, इसमें भी भिन्न-भिन्न स्टेज वाले हैं - सिर्फ ज्ञान के आधार पर जानने वाले कि मैं आत्मा शक्ति स्वरूप हूँ, सर्वशक्तिवान बाप का बच्चा हूँ - यह जानकर प्रयत्न करते हैं शक्तिशाली स्थिति में स्थित होने का। लेकिन सिर्फ जानने तक होने कारण जब यह ज्ञान की पाइंट स्मृति में आती है, उस समय शक्तिशाली पाइंट के कारण वह थोड़ा-सा समय शक्ति- शाली बनते फिर पाइंट भूली, शक्ति गई। जरा भी माया का प्रभाव, ज्ञान भुलाए निर्बल बना देता है। दूसरे हैं - ज्ञान का चिन्तन भी करते, वर्णन भी करते, दूसरों को शक्तिशाली बातें सुनाते, उस समय सेवा का फल मिलने के कारण अपने को उतना समय शक्तिशाली अनुभव करते हैं लेकिन चिन्तन के समय तक वा वर्णन के समय तक, सदा नहीं। पहली चिन्तन की स्थिति, दूसरी वर्णन की स्थिति।

तीसरे हैं - सदा शक्तिशाली आत्मायें। सिर्फ चिन्तन और वर्णन नहीं करते लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप बन जाते। स्वरूप बनना अर्थात् समर्थ बनना। उनके हर कदम, हर कर्म स्वत: ही शक्तिशाली होते हैं। स्मृति स्वरूप हैं इसलिए सदा शक्तिशाली स्थिति है। शक्तिशाली आत्मा सदा अपने को सर्वशक्तिवान बाप के साथ, कम्बाइण्ड अनुभव करेगी। और सदा श्रीमत का हाथ छत्रछाया के रूप में अनुभव होगा। शक्तिशाली आत्मा, सदा दृढ़ता की चाबी के अधिकारी होने कारण सफलता के खज़ाने के मालिक अनुभव करते हैं। सदा सर्व प्राप्तियों के झूलों में झूलते रहते हैं। सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य के मन में गीत गाते रहते हैं। सदा रूहानी नशे में होने कारण पुरानी दुनिया के आकर्षण से सहज परे रहते हैं। मेहनत नहीं करनी पड़ती है। शक्तिशाली आत्मा का हर कर्म, बोल स्वत: और सहज सेवा कराता रहता है। स्व परिवर्तन वा विश्व-परिवर्तन शक्तिशाली होने के कारण सफलता हुई पड़ी है, यह अनुभव सदा ही रहता है। किसी भी कार्य में क्या करें, क्या होगा यह संकल्प मात्र भी नहीं होगा। सफलता की माला सदा जीवन में पड़ी हुई है। विजयी हूँ, विजय माला का हूँ। विजय जन्म सिद्ध अधिकार है, यह अटल निश्चय स्वत: और सदा रहता ही है। समझा। अब अपने आप से पूछो - मैं कौन? शक्तिशाली आत्मायें माइनॉरिटी हैं। स्नेही, सहयोगी उसमें भी भिन्न-भिन्न वैराइटी वाले मैजारिटी हैं। तो अब क्या करेंगे? शक्ति- शाली बनो। संगमयुग का श्रेष्ठ सुख अनुभव करो। समझा! सिर्फ जानने वाले नहीं, पाने वाले बनो। अच्छा-

अपने घरे में आये वा बाप के घर में आये। पहुँच गये, यह देख बापदादा खुश होते हैं। आप भी बहुत खुश हो रहे हैं ना! यह खुशी सदा कायम रहे। सिर्फ मधुबन तक नहीं - संगमयुग ही साथ रहे। बच्चों की खुशी में बाप भी खुश है। कहाँ-कहाँ से चलकर, सहन कर पहुँच तो गये ना। गर्मी-सर्दी, खान-पान सबको सहनकर पहुँचे हो। धूल मिट्टी की वर्षा भी हुई। यह सब पुरानी दुनिया में तो होता ही है। फिर भी आराम मिल गया ना। आराम किया? तीन फुट नहीं तो दो फुट जगह तो मिली। फिर भी अपना घर, दाता का घर मीठा लगता है ना। भक्ति मार्ग की यात्राओं से तो अच्छा स्थान है। छत्रछाया के अन्दर आ गये। प्यार की पालना में आ गये। यज्ञ की श्रेष्ठ धरनी पर पहुँचना, यज्ञ के प्रसाद का अधिकारी बनना, कितना महत्व है। एक कणा, अनेक मूल्यों के समान है। यह तो सब जानते हो ना! वह तो प्रसाद का एक कणा मिलने के प्यासे हैं और आपको तो ब्रह्मा भोजन पेट भरकर मिलेगा। तो कितने भाग्यवान हो! इस महत्व से ब्रह्मा भोजन खाना तो सदा के लिए मन भी महान बन जायेगा। अच्छा- सबसे ज्यादा पंजाब आया है। इस बारी ज्यादा क्यों भागे हो? इतनी संख्या कभी नहीं आई है। होश में आ गये! फिर भी बापदादा ये ही श्रेष्ठ विशेषता देखते - पंजाब में सतसंग और अमृतवेले का महत्व है। नंगे पाव भी अमृतवेले पहुँच जाते हैं। बापदादा भी पंजाब निवासी बच्चें को इसी महत्व को जानने वालों की महानता से देखते हैं। पंजाब निवासी अर्थात् सदा संग के रूहानी रंग में रंगे हुए। सदा सत के संग में रहने वाले। ऐसे हो ना? पंजाब वाले सभी अमृतवेले समर्थ हो मिलन मनाते हो? पंजाब वालों में अमृतवेले का आलस्य तो नहीं है ना? झुटके तो नहीं खाते हो? तो पंजाब की विशेषता सदा याद रखना। अच्छा-

ईस्टर्न जोन भी आया है, ईस्ट की विशेषता क्या होती है? (सनराइज) सूर्य सदा उदय होता है। सूर्य अर्थात् रोशनी का पुंज। तो सभी ईस्टर्न जोन वाले मास्टर ज्ञान सूर्य हैं। सदा अंधकार को मिटाने वाले, रोशनी देने वाले हैं ना! यह विशेषता है ना। कभी माया के अंधकार में नहीं आने वाले। अंधकार मिटाने वाले मास्टर दाता हो गये ना! सूर्य दाता है ना। तो सभी मास्टर सूर्य अर्थात् मास्टर दाता बन विश्व को रोशनी देने के कार्य में बिजी रहते हो ना। जो स्वयं बिजी रहते हैं, फुर्सत में नहीं रहते, माया को भी उन्हों के लिए फुर्सत नहीं होती। तो ईस्टर्न जोन वाले क्या समझते हो? ईस्टर्न जोन में माया आती है? आती भी है तो नमस्कार करने आती या मिक्की माउस बना देती है? क्या मिक्की माउस का खेल अच्छा लगता है? ईस्टर्न जोन की गद्दी है - बाप की गद्दी। तो राजगद्दी हो गई ना! राजगद्दी वाले राजे होंगे या मिक्की माउस होंगे? तो सभी मास्टर ज्ञान सूर्य हो? ज्ञान सूर्य उदय भी वहीं से हुआ है ना। इस्ट से ही उदय हुआ। समझा अपनी विशेषता। प्रवेशता की श्रेष्ठ गद्दी के अर्थात् वरदानी स्थान की श्रेष्ठ आत्मायें हो। यह विशेषता किसी और जोन में नहीं है। तो सदा अपने विशेषता को विश्व की सेवा में लगाओ। क्या विशेषता करेंगे? सदा मास्टर ज्ञान सूर्य। सदा रोशनी देने वाले मास्टर दाता। अच्छा - सभी मिलने आये हैं, सदा श्रेष्ठ मिलन मनाते रहना। मेला अर्थात् मिलना। एक सेकण्ड भी मिलन मेले से वंचित नहीं होना। निरन्तर योगी का अनुभव पक्का करके जाना। अच्छा-

सदा एक बाप के स्नेह में रहने वाले, स्नेही आत्माओं को हर कदम ईश्वरीय कार्य के सहयोगी आत्माओं को, सदा शक्तिशाली स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा विजय के अधिकार को अनुभव करने वाले विजयी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से

एक बल और एक भरोसे से सदा उन्नति को पाते रहो। सदा एक बाप के हैं, एक बाप की श्रीमत पर चलना है। इसी पुरूषार्थ से आगे बढते चलो। अनुभव करो श्रेष्ठ ज्ञान स्वरूप बनने का। महान योगी बनने का। गहराई में जाओ। जितना ज्ञान की गहराई में जायेंगे उतना अमूल्य अनुभव के रत्न प्राप्त करेंगे। एकाग्र बुद्धि बनो। जहाँ एकाग्रता है वहाँ सर्व प्राप्तियों का अनुभव है। अल्पकाल की प्राप्ति के पीछे नहीं जाओ। अविनाशी प्राप्ति करो। विनाशी बातों में आकर्षित नहीं हो। सदा अपने को अविनाशी खज़ाने के मालिक समझ बेहद में आओ। हद में नहीं आओ। बेहद का मजा और हद के आकर्षण का मजा - इसमें रात-दिन का फर्क है। इसलिए समझदार बन समझ से काम लो। और वर्तमान तथा भविष्य श्रेष्ठ बनाओ।  अच्छा - ओमशान्ति।